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आज राष्ट कवि दिनकर की ‘समर शेष है’ के कुछ पंक्तीयों को दोहरा-उंगा, राष्टहित मे हो सकता है अंदर हो जाउंगा।

“समर शेष है इस स्वराज को सत्य बनाना होगा।

जिसका है यह न्यास, उसे सत्वर पहुँचाना होगा।

धारा के मग में अनेक पर्वत जो खड़े हुए हैं,

गंगा का पथ रोक इन्द्र के गज जो अड़े हुए हैं,

कह दो उनसे झुके अगर तो जग में यश पाएँगे,

अड़े रहे तो ऐरावत पत्तों -से बह जाएँगे।

समर शेष है जनगंगा को खुल कर लहराने दो,

शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो।

पथरीली, ऊँची ज़मीन है? तो उसको तोडेंग़े।

समतल पीटे बिना समर की भूमि नहीं छोड़ेंगे।”

राष्ट कवि दिनकर

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