मैं इसे बोलता कुछ और
पर यह उसी मनचली गंगा का कहर है ।
मैं इसे बोलता कुछ और
पर यह उसी नदी का असर है ।
मैं नहीं जानता,
मै,नहीं जानता
की वो बावरी हो गयी
या ये हमारे पाप्-ओ का ज़हर है ।
मैं इसे बोलता कुछ और
पर यह उसी गंगा का कहर है ।
मैं इस नज़ारे की क्या बात करूँ
यह उफान पर वो आग है ।
हाँ दोस्त, यही उस गंगा का राग है ।
जो आज तक न हुआ था
जो आज तक, न हुआ था
वहाँ भी आज गंगा का राज है ।
मै इसे बोलता कुछ और
पर यह उसी गंगा की आगाज है ।
-शुभम कुमार भारती
Kya khoob likha h subham kr. Bharti ji apne
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शुक्रिया साहब बस आप लोग पढ़ते रहिये और हम आपके लिए लिखते रहेंगे ।
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